Blogvani.com गड़बड़झाला: आक्रोश (सुभाष चंदर)

25 फ़र॰ 2010

आक्रोश (सुभाष चंदर)

आक्रोश -सुभाष चंदर कौन कहता है कि अव्‍यवस्‍था के प्रश्‍न पर मेरा लहू उबलता नहीं मेरी रगें गुस्‍से से चटकती नहीं आपने कभी देखा है कि ऐसे प्रश्‍नों पर मैं अपने मुंह से जलती सिगरेट निकाल कर कितनी बेदर्दी से जूतों से मसल देता हूं।

लेबल: ,

2 टिप्पणियाँ:

यहां 25 फ़रवरी 2010 को 8:37 pm बजे, Blogger अविनाश वाचस्पति ने कहा…

प्रख्‍यात व्‍यंग्‍य आलोचक और व्‍यंग्‍य लेखक सुभाष चंदर भाई का ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है। आक्रोश कविता के जरिए गहरा व्‍यंग्‍य सिगरेट और जूतों के माध्‍यम से किया है।

 
यहां 25 फ़रवरी 2010 को 11:28 pm बजे, Blogger राजीव तनेजा ने कहा…

सीमित शब्द ... गहरा व्यंग्य

 

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ