आक्रोश (सुभाष चंदर)
आक्रोश -सुभाष चंदर कौन कहता है कि अव्यवस्था के प्रश्न पर मेरा लहू उबलता नहीं मेरी रगें गुस्से से चटकती नहीं आपने कभी देखा है कि ऐसे प्रश्नों पर मैं अपने मुंह से जलती सिगरेट निकाल कर कितनी बेदर्दी से जूतों से मसल देता हूं।
लेबल: कविता, सुभाष चंदर
2 टिप्पणियाँ:
प्रख्यात व्यंग्य आलोचक और व्यंग्य लेखक सुभाष चंदर भाई का ब्लॉग जगत में स्वागत है। आक्रोश कविता के जरिए गहरा व्यंग्य सिगरेट और जूतों के माध्यम से किया है।
सीमित शब्द ... गहरा व्यंग्य
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